राम बिनु बिरथे जगि जनमा Q&A | BSEB Class10 Hindi Solution

राम बिनु बिरथे जगि जनमा Q&A | BSEB Class10 Hindi Solution

Follow Us On

Bihar Board Class10 Hindi

राम बिनु बिरथे जगि जनमा Q&A | BSEB Class10 Hindi Solution, व्याख्या और important Objectives

इस पोस्ट में हम बिहार बोर्ड कक्षा 10 हिंदी की काव्य पुस्तक “गोधूली” के प्रथम अध्याय “राम नाम बिनु बिरथे जगि जन मा” के काव्य का व्याख्या, सभी प्रश्नों के समाधान(Solutions), महत्त्वपूर्ण प्रश्न (Important Questions) और वस्तुनिष्ठ प्रश्नों (Objective Questions) को विस्तार से देखने वाले हैं। यह अध्याय गुरु नानक देव जी की आध्यात्मिक शिक्षाओं पर आधारित है, जो मानव जीवन की सार्थकता को राम नाम के स्मरण से जोड़ते हैं।
इस अध्याय के सभी प्रश्नोत्तरों एवं व्याख्याओं का PDF भी आप निशुल्क डाउनलोड (Download) कर सकते हैं। PDF लिंक नीचे उपलब्ध है, जिससे आप इसे ऑफलाइन भी पढ़ सकते हैं।

गुरु नानक जी का परिचय

गुरु नानक जी, सिख धर्म के संस्थापक, का जन्म 1469 ई. में तलवंडी (वर्तमान ननकाना साहिब, पाकिस्तान) में हुआ था। उनके पिता का नाम मेहता कालू और माता का नाम तृप्ता था। उनकी बहन का नाम नानकी था। गुरु नानक जी बचपन से ही आध्यात्मिक प्रवृत्ति के थे और उन्होंने सांसारिक कार्यों में रुचि न दिखाते हुए भक्ति और आध्यात्मिक चिंतन को प्राथमिकता दी। उन्होंने हिंदू और इस्लाम धर्मों की एकता पर जोर दिया और सच्चाई, प्रेम, और भक्ति पर आधारित एक सरल धार्मिक मार्ग की स्थापना की। उनकी शिक्षाओं में कर्मकांडों और रूढ़ियों का विरोध था, और उन्होंने राम नाम (ईश्वर के नाम) की महिमा पर बल दिया। गुरु नानक जी ने अपने उपदेशों के माध्यम से मानवता, समानता, और ईश्वर भक्ति का संदेश दिया, जो सिख धर्म के मूल सिद्धांत बने।
अध्याय – 1 राम बिनु बिरथे जगि जनमा
पूरा नाम गुरु नानक देव
काल भक्तिकाल (निर्गुण भक्ति धारा)
जन्म 1469 ई.
जन्म स्थान तलवंडी (अब नानकाना साहिब, पाकिस्तान), जिला लाहौर
पिता कालूचंद खत्री
माता तृप्ता
पत्नी सुलक्षणी
मृत्यु 1539 ई.
प्रमुख रचनाएँ जपुजी, आसादीवार, रहिरास, सोहिला
भाषा पंजाबी मिश्रित ब्रजभाषा और खड़ी बोली
विशेषता निर्गुण निराकार ईश्वर के उपासक, सामाजिक भेदभाव और कर्मकांड के विरोधी, प्रेम और भक्ति के प्रवर्तक, सिख धर्म के संस्थापक
उपाधि / सम्मान सिख धर्म के प्रथम गुरु
रचनाओं का संकलन गुरु ग्रंथ साहिब (संपादक – गुरु अर्जुन देव, 1604 ई.)

व्याख्या

राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा

राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा।
बिखु खावै बिखु बोलै बिनु नावै निहफलु मटि भ्रमना।।
पुस्तक पाठ व्याकरण बखाणै संधिया करम निकाल करै।
बिनु गुरु सबद मुकति कहा प्राणी राम नाम बिनु अरुझि मरै।।

व्याख्या – गुरु नानक कहते हैं कि जो राम के नाम का स्मरण नहीं करता है, उसका संसार में आना और मानव शरीर पाना व्यर्थ चला जाता है। बिना कुछ बोले बिष का पान करता है तथा माया रूपी मृगतृष्णा में भटकता हुआ मर जाता है अर्थात् राम का गुणगान न करके मायाजाल में फँसा रहता है। शास्त्र-पुराण की चर्चा करता है, सुबह, शाम एवं दोपहर तीनों समय संध्या वंदना करता है। नानक लोगों से कहते हैं कि गुरु (भगवान) का भजन किए बिना व्यक्ति को संसार से मुक्ति नहीं मिल सकती तथा सांसारिक मायाजाल में उलझकर रह जाना पड़ता है।

डंड कमंडल सिखा सूत धोती तीरथ गबनु अति भ्रमनु करै।
राम नाम बिनु सांति न आवै जपि हरि-हरि नाम सु पारि परै।।
जटा मुकुट तन भसम लगाई वसन छोड़ि तन मगन भया।।
गुरु परसादि राखिले जन कोउ हरिरस नामक झोलि पीया।।

व्याख्या – ऐसे प्राणी बाहरी दिखावे के लिए डंडा, कमंडल, शिखा, जनेऊ तथा गेरुआ वस्त्र धारण कर तीर्थ यात्रा करते रहते हैं, लेकिन राम नाम का भजन किए बिना जीवन में शांति नहीं मिलती है। वे भगवान का नाम लेते हैं, परंतु केवल प्रदर्शन के लिए। वे अपने को संत कहलाने के लिए जटा को मुकुट बनाकर, शरीर में राख लगाकर, वस्त्रों को त्यागकर नग्न हो जाते हैं। संसार में जितने जीव-जन्तु हैं, उन सबके रूप में जन्म लेते रहते हैं। इसलिए नानक कहते हैं कि भगवान की कृपा को समझकर उन्होंने राम नाम का रस पिया, ताकि असार संसार से मुक्ति मिल सके।

जो नर दुख में दुख नहीं मानै

जो नर दुख में दुख नहीं मानै।
सुख सनेह अरु भय नहिं जाके, कंचन माटी जानै।।
नहिं निंदा नहिं अस्तुति जाके, लोभ मोह अभिमाना।
हरष सोक तें रहै नियारो, नाहि मान अपमाना।।
आसा मनसा सकल त्यागि कै जग तें रहै निरासा।

व्याख्या – गुरु नानक कहते हैं कि जो मनुष्य दुख को दुख नहीं मानता है, जिसे सुख-सुविधा के प्रति कोई आसक्ति नहीं है और न ही किसी प्रकार का भय है, जो सोना को मिट्टी जैसा मानता है। जो किसी की निंदा से न तो घबड़ाता है और न ही प्रशंसा सुनकर गौरवान्वित होता है। जो लाभ, मोह एवं अभिमान से परे है। जो हर्ष एवं विषाद दोनों में एक-सा रहता है, जिसके लिए मान-अपमान दोनों बराबर हैं। जो आशा-तृष्णा से मुक्त होकर सांसारिक विषय-वासनाओं से अनासक्त रहता है।

काम क्रोध जेहि परसे नाहिन तेहि घट ब्रह्म निवासा।।
गुरु कृपा जेहि नर पै कीन्हीं तिन्ह यह जुगति पिछानी।
नानक लीन भयो गोबिन्द सो ज्यों पानी संग पानी।।

व्याख्या– जिसने काम-क्रोध को वश में कर लिया है, वैसे मनुष्य के हृदय में ब्रह्म का निवास होता है। अर्थात् जो मनुष्य राग-द्वेष, मान-अपमान, सुख-दुख, निंदा-स्तुति हर स्थिति में एक समान रहता है, वैसे मनुष्य के हृदय में ब्रह्म निवास करते हैं। गुरु नानक का कहना है कि जिस मनुष्य पर ईश्वर की कृपा होती है, वह सांसारिक विषय-वासनाओं से स्वतः मुक्ति पा जाता है। इसीलिए नानक ईश्वर के चिंतन में लीन होकर उस प्रभु के साथ एकाकार हो गये। यानी आत्मा परमात्मा से मिल गई, जैसे पानी के साथ पानी मिलकर एकाकार हो जाता है।

अभ्यास प्रश्न

कविता के साथ

Q1: कवि किसके बिना जगत् में यह जन्म व्यर्थ मानता है ?
उत्तर : कवि राम नाम के बिना जगत् में जन्म को व्यर्थ मानते हैं। कविता “राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा” के माध्यम से वे स्पष्ट करते हैं कि बिना ईश्वर की भक्ति और नाम जप के, जीवन का कोई उद्देश्य नहीं है और यह मायाजाल में भटकने के समान है।
Q2: वाणी कब विष के समान हो जाती है ?
उत्तर : वाणी विष के समान तब हो जाती है जब उसमें राम-नाम का अभाव हो और वह सिर्फ बाहरी आडंबर में लिप्त हो। ऐसी वाणी केवल काम, क्रोध और अहंकार से भरी होती है और जीवन को विषमय बना देती है।
Q3: नाम-कीर्तन के आगे कवि किन कर्मों की व्यर्थता सिद्ध करता है ?
उत्तर : गुरु नानक व्याकरण के ज्ञान की बखान, दंड कमण्डल धारण करना, सिखा बढ़ाना, तीर्थ भ्रमण, जटा बढ़ाना, तन में भस्म लगाना, वस्त्रहीन होकर नग्न रूप में घूमना इत्यादि कर्म ईश्वर प्राप्ति के साधन आदि को भगवत् नाम-कीर्तन के आगे सब व्यर्थ मानते हैं।
Q4: प्रथम पद के आधार पर बताएँ कि कवि ने अपने युग में धर्म-साधना के कैसे-कैसे रूप देखे थे ?
उत्तर : प्रथम पद में कवि ने धर्म साधना के अनेक लोक प्रचलित रूप की चर्चा करते हैं। सिखा बढ़ाना, ग्रंथों का पाठ करना, व्याकरण वाचना इत्यादि धर्म साधना माने जाते हैं। इसी तरह तन में भस्म रमाकर साधु वेश धारण करना, तीर्थ करना, डंड कमण्डल धारी होना, वस्त्र त्याग करके नग्न रूप में घूमना भी कवि के युग में धर्म-साधना के रूप रहे हैं। पद में इन्हीं रूपों का बखान कवि ने दिये हैं।
Q5: हरिरस से कवि का अभिप्राय क्या है ?
उत्तर : कवि राम नाम की महिमा का बखान करते हुए कहते हैं कि भगवान के नाम से बढ़कर अन्य कोई धर्म साधना नहीं है। भगवत् कीर्तन से प्राप्त परमानंद को हरि रस कहा गया है। भगवान् के नाम कीर्तन, नाम स्मरण में डूब जाना, हरि कीर्तन में रम जाना और कीर्तन में उत्साह, परमानंद की अनुभूति करना ही हरि रस है। इसी रस पान से जीव धन्य हो सकता है।
Q6: कवि की दृष्टि में ब्रह्म का निवास कहाँ है ?
उत्तर : जो प्राणी सांसारिक विषयों की आसक्ति से रहित है, जो मान-अपमान से परे है, हर्ष-शोक दोनों से जो दूर है, उन प्राणियों में ही ब्रह्म का निवास बताया गया है। काम, क्रोध, लोभ, मोह जिसे नहीं छूते वैसे प्राणियों में निश्चित ही ब्रह्म का निवास है।
Q7: गुरु की कृपा से किस युक्ति की पहचान हो पाती है ?
उत्तर : कवि कहते हैं कि ब्रह्म से साक्षात्कार करने हेतु लोभ, मोह, ईर्ष्या, द्वेष, निंदा आदि से दूर होना आवश्यक है। ब्रह्म के सानिध्य प्राप्ति के लिए सांसारिक विषयों से रहित होना अत्यन्त जरूरी है। जो प्राणी माया, मोह, काम, क्रोध लोभ, हर्ष-शोक से रहित है उसमें ब्रह्म का अंश विद्यमान हो जाता है। वह ब्रह्म को प्राप्त कर लेता है। ब्रह्म प्राप्ति की यही युक्ति की पहचान गुरु कृपा से ही हो पाती है। गुरु बिना ब्रह्म को पाने की युक्ति का ज्ञान नहीं मिल सकता। अर्थात् ब्रह्म को पाने के लिए गुरु का कृपा पात्र होना परमावश्यक है।

Q8: व्याख्या करें :

(क) राम नाम बिनु अरुझि मरै ।
उत्तर: प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक हिंदी साहित्य के महान संत कवि गुरुनानक. के द्वारा लिखित “राम नाम बिनु निर्गुण जग जनमा” शीर्षक से उद्धृत है। गुरुनानक निर्गुण, निराकार ईश्वर के उपासक तथा हिंदी की निर्गुण भक्ति धारा के प्रमुख कवि हैं। यहाँ राम नाम की महत्ता पर प्रकाश डालते हैं।

प्रस्तुत व्याख्य पंक्ति में निर्गुणवादी विचारधारा के कवि गुरुनानक राम-नाम की गरिमा मानवीय जीवन में कितनी है इसका उजागर सच्चे हृदय से किये हैं। कवि कहते हैं कि राम-नाम का अध्ययन, संध्या वंदन तीर्थाटन रंगीन वस्त्र धारण यहाँ तक की जरा जूट बढ़ाकर इधर-उधर घूमना ये सभी भक्ति-भाव के बाह्याडम्बर है। इससे जीवन सार्थक कभी भी नहीं हो सकता है। राम-नाम की सत्ता को स्वीकार नहीं करते हैं तब तक मानवीय मूल चेतना का उजागर नहीं हो सकता है। राम-नाम के बिना बहुत-से सांसारिक कार्यों में उलझकर व्यक्ति जीवन लीला समाप्त कर लेता है।

(ख) कंचन माटी जानै ।
उत्तर: प्रस्तुत पंक्ति हमारी पाठ्य-पुस्तक हिंदी साहित्य के “जो नर दुःख में दुख नहीं माने” शीर्षक से उद्धृत है। प्रस्तुत पद्यांश में निर्गुण निराकार ईश्वर के उपासक गुरुनानक सुख-दुख में एक समान उदासीन रहते हुए लोभ और मोह से दूर रहने की सलाह देते हैं।

प्रस्तुत व्याख्येय पंक्ति में कवि ब्रह्म को पाने के लिए सुख-दुःख से परे होना परमावश्यक बताते हैं। वे कहते हैं कि ब्रह्म को वही प्राप्त कर सकता है जो लोक मोह ईर्ष्या-द्वेष, काम-क्रोध से परे हो। जो व्यक्ति सोना को अर्थात् धन को मिट्टी के समान समझकर परब्रह्म की सच्चे हृदय से उपासना करता है वह ब्रह्ममय हो जाता है। जो प्राणि सांसारिक विषयों में आसक्ति नहीं रखता है। उस प्राणि में ब्रह्म निवास करता है।

(ग) हरष सोक तें रहै नियारो, नाहि मान अपमाना ।
उत्तर: प्रस्तुत पंक्ति हमारी पाठ्य-पुस्तक हिंदी साहित्य के संत कवि गुरुनानक द्वारा रचित “जो नर दःख में दःख नहीं माने” शीर्षक से उद्धृत है। प्रस्तुत पंक्ति में संत गुरुनानक उपदेश देते हैं कि ब्रह्म के उपासक प्राणि को हर्ष-शोक, सुख-दुख, निंदा-प्रशंसा, मान-अपमान से परे होना चाहिए। इन संबके पृथक रहने वाले प्राणियों में ब्रह्म का निवास स्थान होता है।

प्रस्तुत पंक्ति में कवि कहते हैं ब्रह्म निर्गुण एवं निराकार है। वैराग्य भाव रखकर ही हम उसे पा सकते हैं। झूठी मान, बड़ाई या निंदा शिकायत की उलझन मनुष्य को ब्रह्म से दूर ले जाता है। ब्रह्म को पाने के लिए, सच्ची मुक्ति के लिए हर्ष-शोक, मान-अपमान से दूर रहकर, उदासीन रहते हुए ब्रह्म की उपासना करना चाहिए।

(घ) नानक लीन भयो गोविंद सो, ज्यों पानी सँग पानी ।
उत्तर: प्रस्तुत पंक्ति में पाठ्य पुस्तक हिंदी साहित्य के महान संत कवि गुरुनानक के द्वारा रचित “जो नर दुःखं में दःख नहीं माने” पाठ से उद्धृत है। इसमें कवि ब्रह्म की सत्ता की महत्ता को बताते हैं। मनुष्य जन्म का अंतिम लक्ष्य ब्रह्म को पाना बताते हुए कहते हैं कि सांसारिक व्यक्ति से दूर रहकर मनुष्य को ब्रह्ममय होने की साधना करनी चाहिए। गुरु कृपा से ईश्वर की प्राप्ति। संभव है।

प्रस्तुत व्याख्येय पंक्ति के माध्यम से कवि कहना चाहते हैं। इस मानवीय जीवन में ब्रह्म को पानी की सच्ची युक्ति, यथार्थ उपाय करना आवश्यक है। पर ब्रह्म को पाना प्राणि का अंतिम लक्ष्य होना चाहिए। जिस प्रकार पानी के साथ पानी मिलकर एकसमान हो जाता है उसी प्रकार जीव जब ब्रह्म के सानिध्य में जाता है तब ब्रह्ममय हो जाता है। जीवात्मा एवं परमात्मा में जब मिलन होता है तब जीवात्मा भी परमात्मा बन जाता है। दोनों का भेद मिट जाता है। कवि कहते हैं कि यह जीव ब्रह्म का ही अंश है। जब हम विषयों की आसक्ति से दूर रहकर गुरु की प्रेरणा से ब्रह्म को पाने की साधना करते हैं तब ब्रह्म का साक्षात्कार होता है और ऐसा होने से जीव ब्रह्ममय हो जाता है।

Q9: आधुनिक जीवन में उपासना के प्रचलित रूपों को देखते हुए नानक के इन पदों की क्या प्रासंगिकता है ? अपने शब्दों में विचार करें ।

उत्तर : आधुनिक जीवन में उपासना के विभिन्न स्वरूप दिखाई पड़ते हैं। ईश्वरीय उपासना में लोग तीर्थाटन करते हैं, जटा-बढ़ाकर, भस्म रमाकर साधु वेश धारण करते हैं। गंगा स्नान दान पुण्य करते हैं। मंदिर मस्जिद जाकर परमात्मा की पुकार करते हैं। साथ ही आज धर्म के नाम पर विभेद भी किया जाता है। धर्म को प्रतिष्ठा प्राप्ति के साधन मानकर धार्मिक बाह्याडम्बर अपनाया जा रहा है। बड़े-बड़े धार्मिक आयोजन किये जाते हैं जिसमें अत्यधिक धन का व्यय भी किया जाता है।
फिर भी लोगों को सुख-शांति नहीं मिलती है। आज लोग भटकाव के पथ पर अग्रसर है। समयाभाव में ईश्वर के सानिध्य में जाने हेतु कठिनतम उपासना के मार्ग को अपनाने में लगे अभिरुचि नहीं रख रहे हैं। इसलिए धार्मिक क्षेत्र में भटकाव आ गया है। हम कह सकते हैं कि नानक के पद में वर्णित राम-नाम की महिमा आधुनिक जीवन में सप्रासंगिक है। हरि-कीर्तन सरल मार्ग है जिसमें न अत्यधिक धन की आवश्यकता है नहीं कोई बाह्माडम्बर की। आज भगवत् नाम रूपी रस का पान किया जाये तो जीवन में उल्लास, शांति, परमानन्द, सुख, ईश्वरीय अनुभूति को प्राप्त किया जा सकता है। हरि रस पान से जीवन को धन्य बनाया जा सकता है। नानक के उपदेश को अपनाकर यथार्थ से युक्त होकर हम जीवन में ब्रह्म का साक्षात्कार आज भी कर सकते हैं।

भाषा की बात

1. पद में प्रयुक्त निम्नांकित शब्दों के मानक आधुनिक रूप लिखें-
बिरथे, बिखु, निहफलु, मटि, संधिआ, करम, गुरसबद, तीरथभगवानु, महिअल, सरब, माटी, अस्तुति, नियरो, जुगति, पिछानी
उत्तर: बिरथे : व्यर्थ
बिखु : विष
निहफलु : निष्फल
मटि : मति / बुद्धि
संधिआ : संध्या
करम : कर्म
गुरसबद : गुरुशब्द
तीरथभगवानु : तीर्थ भगवान
महिअल : मही + स्थल (धरती)
सरब : सर्व (सब कुछ)
माटी : मिट्टी
अस्तुति : स्तुति (प्रथाना)
नियरो : अलग
जुगति : युक्ति / तरीका
पिछानी : पहचान

2. दोनों पदों में प्रयुक्त सर्वनामों को चिह्नित करें और उनके भेद बताएँ।
उत्तर: कहाँ – प्रश्नवाचक सर्वनाम
कोई – अनिश्चयवाचक सर्वनाम
तें – पुरुषवाचक सर्वनाम
यह – निश्चयवाचक सर्वनाम
सो – संबंधवाचक सर्वनाम

3. निम्नलिखित शब्दों के वाक्य-प्रयोग करते हुए लिंग-निर्णय करें-
जग, मुक्ति, धोती, जल, भस्म, कंचन, जुगती, स्तुति
उत्तर: जग – सारा जग भगवान के नाम से चलता है। (पुल्लिंग)
मुक्ति – सत्कर्म से ही मुक्ति मिलती है। (स्त्रीलिंग)
धोती – पंडित जी ने सफेद धोती पहन रखी है। (स्त्रीलिंग)
जल – जल ही जीवन है। (पुल्लिंग)
भस्म – महात्मा जी ने अपने शरीर पर भस्म लगाई। (स्त्रीलिंग)
कंचन – कंचन से बने आभूषण सुंदर लगते हैं। (पुल्लिंग)
जुगती – सफलता के लिए सही जुगती अपनानी चाहिए। (स्त्रीलिंग)
स्तुति – भक्त प्रतिदिन भगवान की स्तुति करते हैं। (स्त्रीलिंग)

4. निम्नलिखित विशेषणों का स्वतंत्र वाक्य प्रयोग करें-
व्यर्थ, निष्फल, नग्न, सर्व, न्यारा, सकल
उत्तर: व्यर्थ – आलसी व्यक्ति का जीवन व्यर्थ हो जाता है।
निष्फल – बिना परिश्रम के किया गया कार्य निष्फल रहता है।
नग्न – बालक नग्न होकर आँगन में खेल रहा था।
सर्व – ईश्वर सर्वव्यापक है।
न्यारा – गाँव की यह सुंदरता सचमुच न्यारी है।
सकल – गुरु की कृपा से सकल कार्य सिद्ध हो जाते हैं।

शब्द निधि

बिरथे : व्यर्थ ही
जगि : संसार में
बिखु : विष
नावै : नाम
निहफलु : निष्फल
मटि : मति, बुद्धि
संधिआ : संध्या, संध्याकालीन उपासना
गुरसबद : गुरु का उपदेश
अरुझि : उलझकर
डंड : दंड (साधु लोग जिसे वैराग्य के चिह्न के रूप में धारण करते हैं)
सिखा : चोटी
सूत : जनेऊ
जीअ : जीव
जंत : जंतु, प्राणी
महीअल : महीतल, धरती पर
कंचन : सोना
अस्तुति : स्तुति, प्रार्थना
नियारो : न्यारा, अलग, पृथक
परसे : स्पर्श
घट : घड़ा (प्रतीकार्थ – देह, शरीर)
जुगति : युक्ति, उपाय
पिछानी : पहचानी
क्रमांक अध्याय
2 प्रेम-अयनि श्री राधिका
3 अति सुधो सनेह को मारग है
4 स्वदेशी
5 भारतमाता
6 जनतंत्र का जन्म
7 हिरोशिमा
8 एक वृक्ष की हत्या
9 हमारी नींद
10 अक्षर – ज्ञान
11 लौटकर आऊँगा फिर
12 मेरे बिना तुम प्रभु

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

नीचे इस अध्याय से संबंधित कुल 40 वस्तुनिष्ठ प्रश्न दिए गए हैं। ये प्रश्न अध्याय के गहन अध्ययन के आधार पर तैयार किए गए हैं तथा इनमें से कई प्रश्न पिछले वर्षों की मैट्रिक परीक्षा से भी लिए गए हैं। इन प्रश्नों का अभ्यास करने से आपको परीक्षा की तैयारी में काफी मदद मिलेगी और यह समझने में आसानी होगी कि परीक्षा में किस प्रकार के प्रश्न पूछे जा सकते हैं।
1. ‘आसादीवार’ किस कवि की रचना है?
(A) रसखान
(B) कुँवर नारायण
(C) रामधारी सिंह दिनकर
(D) गुरुनानक
उत्तर: (D) गुरुनानक

2. गुरु नानक पंजाबी के अलावे और किस भाषा में कविताएँ लिखे?
(A) उड़िया
(B) हिन्दी
(C) मराठी
(D) बंगाली
उत्तर: (B) हिन्दी

3. किसके बिना प्राणी को मुक्ति नहीं मिलती?
(A) मूर्ति पूजन के बिना
(B) कर्मकांड के बिना
(C) गुरु ज्ञान के बिना
(D) तीर्थ यात्रा के बिना
उत्तर: (C) गुरु ज्ञान के बिना

4. गुरु नानक किस मार्ग के कवि हैं?
(A) सूफी मार्ग के
(B) निर्गुण भक्ति मार्ग के
(C) कृष्ण भक्ति मार्ग के
(D) राम भक्ति मार्ग के
उत्तर: (B) निर्गुण भक्ति मार्ग के

5. गुरु नानक ने किस धर्म का प्रवर्तन किया?
(A) सिख धर्म का
(B) हिन्दु धर्म का
(C) मुस्लिम धर्म का
(D) ईसाई धर्म का
उत्तर: (A) सिख धर्म का

6. गुरु नानक की पत्नी का क्या नाम था?
(A) सुलक्षणी
(B) सुलोचना
(C) सरला
(D) सुलोचनी
उत्तर: (A) सुलक्षणी

7. गुरुनानक का जन्म कब हुआ था?
(A) 1450
(B) 1469
(C) 1475
(D) 1480
उत्तर: (B) 1469

8. गुरुनानक का जन्म लाहौर के किस ग्राम में हुआ था?
(A) तलबंडी
(B) अमृतसर
(C) जालंधर
(D) लुधियाना
उत्तर: (A) तलबंडी

9. किनका जन्म स्थान ‘नानकाना साहब’ कहलाता है?
(A) गुरु अर्जुन देव
(B) गुरु गोविन्द सिंह
(C) गुरुनानक
(D) गुरु हरगोविन्द सिंह
उत्तर: (C) गुरुनानक

10. गुरुनानक किस काल के कवि हैं?
(A) आदिकाल
(B) भक्तिकाल
(C) रीतिकाल
(D) आधुनिक काल
उत्तर: (B) भक्तिकाल

11. ‘राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा’। यह पंक्ति किसकी है।
(A) गुरुनानक
(B) रसखान
(C) घनानंद
(D) प्रेमघन
उत्तर: (A) गुरुनानक

12. गुरुनानक कौन थे?
(A) सिक्खों के दशम गुरु
(B) सिक्खों के प्रथम गुरु
(C) हिन्दुओं के प्रथम गुरु
(D) मुस्लिमों के प्रथम गुरु
उत्तर: (B) सिक्खों के प्रथम गुरु

13. गुरुनानक के पिता का नाम क्या था?
(A) लालूचंद खत्री
(B) ताराचंद खत्री
(C) कालूचंद खत्री
(D) वीरचंद खत्री
उत्तर: (B) ताराचंद खत्री

14. गुरुनानक किस भक्तिधारा के कवि हैं?
(A) सगुण भक्ति धारा
(B) निर्गुण भक्ति धारा के
(C) सूफी धारा के
(D) कृष्ण भक्ति धारा के
उत्तर: (B) निर्गुण भक्ति धारा के

15. गुरुनानक की भेंट किस मुगल शासक से हुई थी?
(A) बाबर
(B) हुमायूँ
(C) अकबर
(D) जहाँगीर
उत्तर: (B) हुमायूँ

16. हरिरस से कवि का क्या अभिप्राय है?
(A) संध्या आरती
(B) कर्मकाण्ड
(C) राम नाम के जप से
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर: (C) राम नाम के जप से

17. किस कवि ने वर्णाश्रम व्यवस्था और कर्मकाण्ड का विरोध करके निर्गुण ब्रह्म की भक्ति का प्रचार किया?
(A) घनानंद ने
(B) प्रेमघन ने
(C) कुँवर नारायण ने
(D) गुरुनानक ने
उत्तर: (D) गुरुनानक ने

18. गुरुनानक के पद हैं-
(A) राम भक्तिमय गीत
(B) प्रेम एवं भक्ति के मधुर गीत
(C) सूफी गीत
(D) कृष्ण भक्तिमय गीत
उत्तर: (B) प्रेम एवं भक्ति के मधुर गीत

19. ‘राम नाम बिनु विरथे जगि जनमा’ शीर्षक कविता के अनुसार ईश्वर की शरण में जाने का अधिकारी कौन है?
(A) जो अहंकारी
(B) जो निराश हो
(C) जो दुखी हो
(D) जिसका अंतःकरण निर्मल हो
उत्तर: (D) जिसका अंतःकरण निर्मल हो

20. नानकाना साहब का संबंध है-
(A) गुरुनानक से
(B) रसखान से
(C) प्रेमघन से
(D) घनानंद से
उत्तर: (A) गुरुनानक से

21. ‘जपुजी’ किसकी रचना है?
(A) कबीर
(B) रहीम
(C) गुरुनानक
(D) घनानंद
उत्तर: (C) गुरुनानक

22. गुरुनानक किसका विरोध करते हैं?
(A) वाह्याडंवर का
(B) तीर्थाटन का
(C) कर्मकाण्ड का
(D) उपर्युक्त सभी का
उत्तर: (D) उपर्युक्त सभी का

23. किनकी रचनाओं का संग्रह ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ?
(A) गुरुनानक
(B) गुरु अर्जुन देव
(C) गुरु गोविन्द सिंह
(D) रसखान
उत्तर: (B) गुरु अर्जुन देव

24. गुरुनानक के उपदेशों में मिलती है-
(A) गुरु की महत्ता
(B) ब्रह्म की सर्वशक्तिमत्ता
(C) नाम जप की महिमा
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर: (D) उपर्युक्त सभी

25. गुरुनानक की रचनाओं का संग्रह गुरु अर्जुन देव ने किया जो ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ के नाम से प्रसिद्ध है।
(A) 1600 ई०
(B) 1602 ई०
(C) 1604 ई०
(D) 1610 ई०
उत्तर: (C) 1604 ई०

26. नानक के अनुसार गुरु कृपा कैसे नर पर होता है?
(A) जो दुख में दुख नहीं मानता
(B) जो दुख-सुख में उदासीन रहता
(C) जो कंचन और मिट्टी में भेद नहीं समझता
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर: (D) उपर्युक्त सभी

27. नानक की दृष्टि में ब्रह्म का निवास कहाँ है?
(A) मंदिर में
(B) मस्जिद में
(C) कर्मकाण्ड में
(D) सच्चे हृदय में
उत्तर: (D) सच्चे हृदय में

28. ‘राम नाम बिनु बिरथे जगि जन्मा’ किस पर बल देता है?
(A) बाहरी वेश-भूषा
(B) कर्मकाण्ड
(C) पूजा-पाठ
(D) सच्चे हृदय से राम नाम के कीर्तन पर
उत्तर: (D) सच्चे हृदय से राम नाम के कीर्तन पर

29. ‘रहिरास’ किसकी रचना है?
(A) गुरु गोविन्द सिंह
(B) गुरुनानक
(C) नानक
(D) घनानंद
उत्तर: (B) गुरुनानक

30. बिरथे का अर्थ है
(A) व्यर्थ
(B) बिना
(C) संसार
(D) विष
उत्तर: (A) व्यर्थ

31. कवि नानक ने किसके बिना जगत में यह जन्म व्यर्थ मानते हैं?
(A) पूजा-पाठ
(B) बाह्यडंवर
(C) नाम-जप, कीर्तन
(D) कर्मकाण्ड
उत्तर: (C) नाम-जप, कीर्तन

32. गुरु अर्जुनदेव सिखों के गुरु थे।
(A) पहले
(B) पाँचवे
(C) सातवे
(D) दसवे
उत्तर: (B) पाँचवे

33. गुरुनानक अपने प्राण कब त्याग दिए थे?
(A) 1519
(B) 1529
(C) 1539
(D) 1549
उत्तर: (C) 1539

34. जो नर दुख में दुख नहीं मानै किनकी रचना है?
(A) रसखान
(B) गुरुनानक
(C) भारतेन्दु हरिशचन्द्र
(D) घनानंद
उत्तर: (B) गुरुनानक

35. ‘राम नाम बिनु विरथे जगि जनमा’ के माध्यम से कवि किसका विरोध करते हैं?
(A) बाह्याडंवर
(B) पूजा-पाठ
(C) कर्मकाण्ड
(D) सभी का
उत्तर: (D) सभी का

36. गुरु नानक किस स्थान पर जन्मे थे?
(A) अमृतसर
(B) तलवंडी (ननकाना साहिब)
(C) पटना साहिब
(D) दिल्ली
उत्तर: (B) तलवंडी (ननकाना साहिब)

37. गुरु नानक के जीवन का उद्देश्य क्या था?
(A) युद्ध करना
(B) ईश्वर की भक्ति और मानव सेवा
(C) राज्य करना
(D) शिक्षा देना
उत्तर: (B) ईश्वर की भक्ति और मानव सेवा

38. गुरु नानक किस धर्म के प्रवर्तक माने जाते हैं?
(A) इस्लाम
(B) ईसाई
(C) सिख धर्म
(D) जैन धर्म
उत्तर: (C) सिख धर्म

39. गुरु नानक का संदेश किसके माध्यम से प्रकट होता है?
(A) कीर्तन और उपदेशों के माध्यम से
(B) युद्ध और राजनीति से
(C) व्यापार से
(D) ग्रंथों की नकल से
उत्तर: (A) कीर्तन और उपदेशों के माध्यम से

40. गुरु नानक ने समाज में किस बात पर बल दिया?
(A) समानता और भाईचारे पर
(B) ऊँच-नीच पर
(C) केवल पूजा-पाठ पर
(D) कर्मकाण्ड पर
उत्तर: (A) समानता और भाईचारे पर

निष्कर्ष :

इस तरह “राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा” कविता हमें सिखाती है कि इंसान का असली जीवन तभी सफल होता है जब वह भगवान के नाम को याद करता है और अच्छे काम करता है। गुरु नानक देव जी के विचार आज भी हमें सही रास्ता दिखाते हैं। इस अध्याय के प्रश्न-उत्तर, महत्त्वपूर्ण सवाल और ऑब्जेक्टिव क्वेश्चन पढ़कर आपको न सिर्फ परीक्षा में मदद मिलेगी बल्कि जीवन के लिए भी अच्छी सीख मिलेगी। उम्मीद है कि यह समाधान आपको पढ़ाई में आसान और उपयोगी लगेगा। यदि किसी प्रश्न या समाधान में आपको कोई दिक्कत आती है, तो आप नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स में पूछ सकते हैं। या हमसे संपर्क कर सकते हैं। हम आपकी मदद करने की पूरी कोशिश करेंगे। संपर्क करें
Scroll to Top