BSEB 10th Hindi Godhuli Kavy Ex-4 Solution

BSEB 10th Hindi Godhuli Kavy Ex-4 Solution

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Bihar Board 10th Hindi Solution

BSEB 10th Hindi Godhuli Kavy Ex-4 Solution व्याख्या और important Objectives

इस पोस्ट में हम बिहार बोर्ड कक्षा 10 हिंदी की काव्य पुस्तक “गोधूली” के चौथे अध्याय “स्वदेशी” के काव्य का व्याख्या, सभी प्रश्नों के समाधान (Solutions), महत्त्वपूर्ण प्रश्न (Important Questions) और वस्तुनिष्ठ प्रश्नों (Objective Questions) को विस्तार से देखने वाले हैं। यह काव्य हमें स्वदेशी अपनाने, भारतीय भाषा और संस्कृति पर गर्व करने का संदेश देती है।
बिहार बोर्ड के छात्र/छात्राएँ इस पोस्ट को पूरा अंत तक पढ़े। इसके पढ़ने से इस अध्याय के सभी डाउट खत्म हो जाएँगे और आप बिहार बोर्ड मैट्रिक परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करने में बहुत मददगार होगा। साथ ही आप सभी इस अध्याय के सभी प्रश्नोत्तरों एवं व्याख्याओं का PDF भी आप निशुल्क डाउनलोड (Download) कर सकते हैं। PDF लिंक नीचे उपलब्ध है, जिससे आप इसे ऑफलाइन भी पढ़ सकते हैं।

प्रेमघन जी का संक्षिप्त परिचय

अध्याय 4 स्वदेशी
पूरा नाम बदरीनारायण चौधरी (प्रेमघन)
काल भारतेन्दु युग
जन्म 1855 ई.
जन्म स्थान मिर्जापुर (उत्तर प्रदेश)
मृत्यु 1922 ई.
प्रमुख रचनाएँ भारत सौभाग्य, प्रयाग रामागमन, जीर्ण जनपद, प्रेमघन सर्वस्व
भाषा मुख्यतः ब्रजभाषा और अवधी; खड़ी बोली का भी प्रयोग
विशेषता निबंधकार, नाटककार, कवि एवं समीक्षक; राष्ट्रीय स्वाधीनता की चेतना; ग्रामीण जीवन का यथार्थ चित्रण
उपाधि / सम्मान ‘रसिक समाज’ के संस्थापक, ‘आनंद कादंबिनी’ एवं ‘नागरी नीरद’ के संपादक; साहित्य सम्मेलन के कलकत्ता अधिवेशन के सभापति

व्याख्या

स्वदेशी

1. “सबै बिदेसी वस्तु नर, गति रति रीत लखात ।
भारतीयता कछु न अब, भारत में दरसात ।।”

व्याख्या – लोग पूरी तरह से विदेशी वस्तुओं, आचार-विचार और जीवन शैली में डूब गए हैं। भारतीयता का नामोनिशान अब दिखाई ही नहीं देता।
कवि कहते हैं- महंगे विदेशी ब्रांड के कपड़े, जूते, मोबाइल और गाड़ियाँ भारतीय युवाओं के लिए “स्टेटस सिंबल” बन गए हैं, जबकि देशी ब्रांड को अक्सर कम आँका जाता है।

2. “मनुज भारती देखि कोउ, सकत नहीं पहिचान ।
मुसल्मान, हिंदू किधौं, के हैं ये क्रिस्तान ।।”

व्याख्या – अब किसी भारतीय को देखकर यह पहचानना कठिन हो गया है कि वह हिंदू है, मुसलमान है या ईसाई, क्योंकि सबका पहनावा और तौर-तरीके विदेशी बन गए हैं।
कवि व्यक्त करते है कि पश्चिमी फैशन और लाइफ़स्टाइल अपनाने के कारण युवाओं की वेशभूषा देखकर यह पहचानना कठिन हो जाता है कि वह भारतीय संस्कृति से जुड़ा है या नहीं।

3. “पढ़ि विद्या परदेस की, बुद्धि विदेसी पाय ।
चाल-चलन परदेस की, गई इन्हें अति भाय ।।”

व्याख्या – विदेशी शिक्षा के कारण भारतीयों की सोच भी विदेशी हो गई है। उनका आचरण और व्यवहार पूरी तरह विदेशी संस्कृति से प्रभावित है।
कवि कहते हैं : आज लाखों छात्र विदेश (अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया) पढ़ने जाते हैं और वहीं बस जाना चाहते हैं। भारतीय शिक्षा और संस्कृति को अक्सर “कमतर” समझते हैं।

4. “ठटे बिदेसी ठाट सब, बन्यो देस बिदेस ।
सपनेहूँ जिनमें न कहुँ, भारतीयता लेस ।।”

व्याख्या – लोग विदेशी ठाट-बाट और आडंबरों में इतने डूब गए हैं कि उनका अपना देश ही विदेशी जैसा लगने लगा है। भारतीयता का नाम तक नहीं बचा।
कवि कहते है : शादियों में भी विदेशी स्टाइल का प्रचलन बढ़ गया है। पारंपरिक रीति-रिवाजों को “पुराना” मान लिया जाता है।

5. “बोलि सकत हिंदी नहीं, अब मिलि हिंदू लोग ।
अंगरेजी भाखन करत, अंगरेजी उपभोग ।।”

व्याख्या – भारतीय (हिंदू) अब अपनी मातृभाषा हिंदी ठीक से नहीं बोल पाते। वे अंग्रेजी भाषा बोलने में गर्व महसूस करते हैं और अंग्रेजी तौर-तरीके अपनाते हैं।
कई बच्चों को अंग्रेजी तो धाराप्रवाह आती है, पर हिंदी या अपनी मातृभाषा लिखने-बोलने में कठिनाई होती है। अभिभावक भी “English Medium” स्कूल को ही प्रतिष्ठा मानते हैं।

6. “अंगरेजी बाहन, बसन, वेष रीति औ नीति ।
अंगरेजी रुचि, गृह, सकल, बस्तु देस विपरीत ।।”

व्याख्या – परिवहन साधन, वस्त्र, रहन-सहन, खान-पान, घर—सब अंग्रेजी प्रभाव में हैं। यह सब भारतीय संस्कृति से बिल्कुल विपरीत है।
कवि आज के संदर्भ में कहते हैं आज के घरों में फर्नीचर, डेकोरेशन, खानपान तक “वेस्टर्न” पैटर्न पर होता है। पिज्जा और वर्गर, पास्ता जैसी चीज़ें “मॉर्डन” मानी जाती हैं, जबकि पारंपरिक भोजन को “देसी” कहकर हंसी उड़ाई जाती है।

7. “हिन्दुस्तानी नाम सुनि, अब ये सकुचि लजात ।
भारतीय सब वस्तु ही, सों ये हाय घिनात ।।”

व्याख्या – भारतीय लोग अब अपने ही देशी नाम से शर्माते हैं। भारतीय वस्तुओं और चीज़ों से घृणा करने लगे हैं।
बहुत से लोग “भारतीय समान” सुनकर हिचकिचाते हैं, जबकि वही लोग विदेशी टैग देखकर लाखों खर्च कर देते हैं।

8. “देस नगर बानक बनो, सब अंगरेजी चाल ।
हाटन मैं देखहु भरा, बसे अंगरेजी माल ।।”

व्याख्या – भारत के शहर अब अंग्रेजी ढंग पर बसने लगे हैं। बाज़ारों और दुकानों में भी केवल विदेशी वस्तुएँ ही दिखाई देती हैं।
आज कल देखा जाता है मॉल्स में ज़्यादातर विदेशी ब्रांड की दुकानें होती हैं। Amazon/Flipkart जैसी साइटों पर भी विदेशी उत्पादों की भरमार है।

9. “जिनसों सम्हल सकत नहिं तनकी, धोती ढीली-ढाली ।
देस प्रबंध करिहिंगे वे यह, कैसी खाम खयाली ।।”

व्याख्या – कवि व्यंग्य करते हुए कहते हैं—जो लोग धोती जैसी साधारण वस्त्र को ठीक से संभाल नहीं सकते, वे देश का प्रबंधन कैसे करेंगे? यह तो उनकी मूर्खता है।
कई नेता और अधिकारी दिखावे में तो बड़े-बड़े दावे करते हैं, लेकिन ज़मीन पर छोटी-सी व्यवस्था भी सही नहीं कर पाते।

10. “दास-वृत्ति की चाह चहूँ दिसि चारहु बरन बढ़ाली ।
करत खुशामद झूठ प्रशंसा मानहुँ बने डफाली ।।”

व्याख्या – सभी वर्णों (जातियों) के लोग अब दासता की वृत्ति को अपना रहे हैं। वे अंग्रेजों की खुशामद करते हैं, झूठी प्रशंसा करते हैं, मानो वे ढोल बजाने वाले (डफाली) बन गए हों।
आज भी कई लोग विदेशी देशों और संस्कृति के आगे झुककर ही गर्व महसूस करते हैं। विदेशी कंपनियों की चमक देखकर लोग “Make in India” को उतना महत्व नहीं देते।

बोध और अभ्यास

कविता के साथ

Q1: कविता के शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर : किसी भी गद्य या पद्य का शीर्षक उसकी धुरी होता है, जिसके चारों ओर उसकी कथा या भाव-वस्तु घूमते रहते हैं। रचनाकार शीर्षक देते समय उसकी कथावस्तु और मूल भाव को ध्यान में रखता है। प्रस्तुत कविता का शीर्षक “स्वदेशी” अत्यंत उपयुक्त और सार्थक है। इस कविता में पराधीन भारत की दुर्दशा तथा भारतीयों की मानसिकता को चित्रित किया गया है। लोग अंग्रेजी वस्तुओं को फैशन और आधुनिकता का प्रतीक मानकर अपनाते हैं, जबकि स्वदेशी वस्तुओं को हीन समझते हैं। खान-पान, पहनावा, रहन-सहन सब कुछ पश्चिमी देशों के प्रभाव में है। हिंदू, मुसलमान, ईसाई सभी विदेशी वस्तुओं पर ही निर्भर दिखते हैं और भारतीय संस्कृति से दूर होते जा रहे हैं। बाजारों में विदेशी वस्तुओं का बोलबाला है तथा भारतीय कहलाने पर लोग संकोच महसूस करते हैं।
अतः यह शीर्षक कवि की भावनाओं और कविता की मूल विषय-वस्तु को पूर्णतः प्रकट करता है। इसलिए कविता का शीर्षक “स्वदेशी” सार्थक और समीचीन है।
Q2: कवि को भारत में भारतीयता क्यों नहीं दिखाई पड़ती ?
उत्तर : किसी देश की असली पहचान वहाँ के लोगों के रहन-सहन, बोल-चाल, खान-पान और संस्कृति से होती है। कवि को भारत में भारतीयता इसलिए नहीं दिखती क्योंकि लोग अब विदेशी तरीके अपना चुके हैं। उनके खान-पान, पहनावे और बोल-चाल में अंग्रेजियत साफ़ झलकती है।
हाट-बाजार हों या समाजिक जीवन, हर जगह पाश्चात्य चीजों का बोलबाला है। भारत की पारंपरिक वेशभूषा, संस्कृति और सभ्यता अब कम दिखाई देती हैं। हिंदू हों या मुसलमान, गाँव के लोग हों या शहरवासी, राजनीति हो या व्यापार—हर जगह अंग्रेजियत का असर है। लोग अपनी भाषा और संस्कृति से दूर होते जा रहे हैं। इस वजह से कवि को लगता है कि भारत में अब वह भारतीयता नहीं दिखती जिसे वह पहचानते थे।
Q3: कवि समाज के किस वर्ग की आलोचना करता है और क्यों ?
उत्तर : कवि उस समाज के वर्ग की आलोचना करते हैं जो अंग्रेजी बोलने और पाश्चात्य रहन-सहन को शान समझता है। ये लोग विदेशी ठाट-बाट और विदेशी बोलचाल अपनाना प्रगति का संकेत मानते हैं। हिंदुस्तान के नाम लेने में झिझकते हैं और अपनी मूल संस्कृति को भूलकर पाश्चात्य चीज़ों में गौरव महसूस करते हैं। ऐसे लोग झूठी प्रशंसा में खुश रहते हैं और अपने देश की संस्कृति को नज़रअंदाज कर देते हैं। कवि इसलिए इस वर्ग की आलोचना करते हैं क्योंकि यह देश के हित के खिलाफ काम कर रहा है और अप्रत्यक्ष रूप से भारत को विदेशी-दासता के बंधन में बांधने में मदद कर रहा है।
Q4: कवि नगर, बाजार और अर्थव्यवस्था पर क्या टिप्पणी करता है ?
उत्तर : कवि कहते हैं कि आज के नगरों में स्वदेशी चीज़ों की कोई झलक नहीं दिखती। शहर का रहन-सहन और नगरीय व्यवस्था पूरी तरह पाश्चात्य सभ्यता के अनुकरण में बदल गई है। बाजार में भी अधिकांश वस्तुएँ विदेशी दिखाई देती हैं, और लोग इन्हें खरीदने में गर्व महसूस करते हैं। इससे विदेशी कंपनियों को लाभ होता है और स्वदेशी वस्तुओं का महत्व कम हो गया है। कवि यह भी बताते हैं कि ऐसी प्रवृत्ति देश की अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक असर डाल रही है और चारों तरफ विदेशीपन का बढ़ना हमारी कमजोरी को उजागर कर रहा है।
Q5: नेताओं के बारे में कवि की क्या राय है ?
उत्तर : कवि बताते हैं कि आज देश के नेता भी स्वदेशी वेश-भूषा और बोल-चाल से दूरी बनाए हुए हैं। वे अपनी ही सभ्यता और संस्कृति को बढ़ावा देने के बजाय पाश्चात्य सभ्यता से प्रभावित दिखते हैं। कवि का मानना है कि यदि नेता अपने देश की परंपरागत पोशाक या रहन-सहन अपनाने में संकोच करता है, तो यह सवाल उठता है कि वह देश की व्यवस्था संभालने में कितना सक्षम होगा। ऐसे नेताओं में स्वदेशी भावना की कमी है और वे अपने देश की मिट्टी से दूर होते जा रहे हैं। ऐसे नेताओं से देशहित की अपेक्षा करना बस ख्याली पुलाव बन जाता है।
Q6: कवि ने ‘डफाली’ किसे कहा है और क्यों ?
उत्तर : कवि जिन लोगों में दास-वृत्ति बढ़ती देखता है, यानी जो पाश्चात्य सभ्यता और विदेशी रीति-रिवाज का अंधानुकरण कर रहे हैं, उन्हें ‘डफाली’ कहता है। ये लोग विदेशी वस्तुओं और अंग्रेजी संस्कृति की झूठी तारीफ में लगे रहते हैं। जैसे डफाली बजाकर राग अलापता है, वैसे ही ये लोग पाश्चात्य और अंग्रेजी चीज़ों की महिमा गाते रहते हैं।
Q7: व्याख्या करें:
(क) मनुज भारती देखि कोउ, सकत नहीं पहिचान ।
(ख) अंग्रेजी रुचि, गृह, सकल बस्तु देस विपरीत ।
उत्तर : (क) यह पंक्ति ‘स्वदेशी’ कविता से है, जिसे देशभक्त कति बद्रीनारायण चौधरी ‘प्रेमघन’ ने लिखा है। कवि यहाँ यह बताना चाहते हैं कि आज भारत में लोग इतने पाश्चात्य रंग में रंग गए हैं कि पहचान ही नहीं पाई जाती कि ये वास्तव में भारतीय हैं। उनके पहनावे, भाषा, बोलचाल, खान-पान सब विदेशी हो गए हैं। हिन्दू या मुसलमान, सभी अपनी असली भारतीय पहचान भूलकर अंग्रेजी और पाश्चात्य रीति-रिवाजों को अपना रहे हैं।

(ख) इस पंक्ति में कवि कहते हैं कि भारत के लोगों में स्वदेशी चीज़ों के प्रति रुचि लगभग खत्म हो गई है। घर-गृहस्थी से लेकर जीवनशैली तक, सब कुछ विदेशी चीज़ों और अंग्रेजी रीति-रिवाज के अनुसार हो रहा है। लोगों का ध्यान और लगाव अपने देश की वस्तुओं और रीति-रिवाजों की बजाय पूरी तरह विदेशी चीज़ों की ओर हो गया है।
Q8: आपके मत से स्वदेशी की भावना किस दोहे में सबसे अधिक प्रभावशाली है ? स्पष्ट करें
उत्तर : मेरे विचार में दोहा संख्या 9 में स्वदेशी की भावना सबसे प्रभावशाली है। इस दोहे में यह साफ झलकता है कि भारतीय संस्कृति में जितनी सरलता, स्वाभाविकता और पवित्रता है, उतनी विदेशी संस्कृति में नहीं है। आज लोग अपनी ही भारतीय परंपरा और मूल रीति-रिवाज निभाने में असमर्थ हैं। ऐसे में विदेशी रीति-रिवाज अपनाना और भी मुश्किल हो जाता है। इसलिए हर हाल में हमें अपनी संस्कृति, पहनावा और परंपरा को अपनाना चाहिए और स्वदेशी भावना को बनाए रखना चाहिए।

भाषा की बात

1. निम्नांकित शब्दों से विशेषण बनाएँ
रुचि, देस, नगर, प्रबंध, खयाल, दासता, झूठ, प्रशंसा
उत्तर: रुचि → रुचिकर (जो पसंद आने वाला हो)
देस → देशी (देश से संबंधित)
नगर → नगरीय (नगर से जुड़ा हुआ)
प्रबंध → प्रबंधकीय (प्रबंधन करने वाला)
खयाल → खयाली (कल्पना से जुड़ा)
दासता → दास्य (गुलामी से संबंधित)
झूठ → झूठा (सत्य के विपरीत)
प्रशंसा → प्रशंसनीय (जिसकी प्रशंसा की जा सके)

2. निम्नांकित शब्दों का लिंग-निर्णय करते हुए वाक्य बनाएँ
चाल-चलन, खामखयाली, खुशामद, माल, वस्तु, वाहन, रीत, हाट, दासवृत्ति, बानक
उत्तर : चाल-चलन (पुल्लिंग) → अच्छे चाल-चलन से व्यक्ति का चरित्र उजागर होता है।
खामखयाली (स्त्रीलिंग) → वह खामखयाली में ही बातें करता रहता है।
खुशामद (स्त्रीलिंग) → खुशामद करने से किसी का असली सम्मान नहीं मिलता।
माल (पुल्लिंग) → व्यापारी ने बहुत सारा माल विदेश भेजा।
वस्तु (स्त्रीलिंग) → यह पुस्तक मेरे लिए बहुमूल्य वस्तु है।
वाहन (पुल्लिंग) → बस ग्रामीणों का प्रमुख यातायात वाहन है।
रीत (स्त्रीलिंग) → भारत में अतिथि-सत्कार की रीत प्राचीन काल से चली आ रही है।
हाट (पुल्लिंग) → गाँव के हाट में हर रविवार को भीड़ लगती है।
दासवृत्ति (स्त्रीलिंग) → दासवृत्ति से मुक्ति पाना मनुष्य का जन्मसिद्ध अधिकार है।
बानक (पुल्लिंग) → उस युवक का बानक देखकर सब लोग प्रभावित हो गए।

3. कविता से संज्ञा पदों का चुनाव करें और उनके प्रकार भी बताएँ ।
उत्तर: वस्तु → जातिवाचक संज्ञा
नर → जातिवाचक संज्ञा
भारतीयता → भाववाचक संज्ञा
भारत → व्यक्तिवाचक संज्ञा
मनुज → जातिवाचक संज्ञा
भारती → व्यक्तिवाचक
चाल-चालन → भाववाचक संज्ञा
देश → जातिवाचक संज्ञा
विदेश → जातिवाचक संज्ञा
बरुन → व्यक्तिवाचक संज्ञा
गृह → जातिवाचक संज्ञा
हिंदुस्तानी → जातिवाचक
नगर → जातिवाचक संज्ञा
हाटन → जातिवाचक संज्ञा
धोनी → जातिवाचक
ख़ुशामद → भाववाचक संज्ञा

शब्द निधि

गति : स्वभाव
रति : लगाव
रीत : पद्धति
मनुज भारती : भारतीय मनुष्य
क्रिस्तान : क्रिश्चियन, अंग्रेज
बसन : वस्त्र
बानक : बाना, वेशभूषा
खामखयाली : कोरी कल्पना
चारहु बरन : चारों वर्णों में
डफाली : डफ बजानेवाला, बाजा बजानेवाला
क्रमांक अध्याय
1 राम बिनु बिरथे जगि जनमा
2 प्रेम-अयनि श्री राधिका
3 अति सुधो सनेह को मारग है
5 भारतमाता
6 जनतंत्र का जन्म
7 हिरोशिमा
8 एक वृक्ष की हत्या
9 हमारी नींद
10 अक्षर – ज्ञान
11 लौटकर आऊँगा फिर
12 मेरे बिना तुम प्रभु

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

नीचे इस अध्याय से संबंधित कुल 30 वस्तुनिष्ठ प्रश्न दिए गए हैं। ये प्रश्न अध्याय के गहन अध्ययन के आधार पर तैयार किए गए हैं तथा इनमें से कई प्रश्न पिछले वर्षों की मैट्रिक परीक्षा से भी लिए गए हैं। इन प्रश्नों का अभ्यास करने से आपको परीक्षा की तैयारी में काफी मदद मिलेगी और यह समझने में आसानी होगी कि परीक्षा में किस प्रकार के प्रश्न पूछे जा सकते हैं।
1. ‘प्रेमघन’ किस युग के प्रमुख कवि थे?
(A) प्रयोगवाद युग के
(B) प्रपद्यवाद युग के
(C) भारतेन्दु युग के
(D) छायावाद युग के
उत्तर: (C) भारतेन्दु युग के

2. ‘जीर्ण जनपद’ किस कवि की रचना है?
(A) बदरीनारायण चौधरी प्रेमघन की
(B) अनामिका की
(C) घनानंद की
(D) रसखान की
उत्तर: (A) बदरीनारायण चौधरी प्रेमघन की

3. ‘भारत सौभाग्य’ किनका प्रसिद्ध नाटक है?
(A) कुँवर नारायण का
(B) प्रेमघन का
(C) अनामिका का
(D) जीवनानंद दास का
उत्तर: (A) कुँवर नारायण का

4. कवि प्रेमघन के अनुसार कौन-सी विद्या पढ़कर लोगों की बुद्धि विदेशी हो गयी है?
(A) छल विद्या
(B) कपट विद्या
(C) विदेशी विद्या
(D) तकनीकी विद्या
उत्तर: (C) विदेशी विद्या

5. ‘स्वदेशी’ शीर्षक पाठ के रचनाकार हैं
(A) रामघन
(B) मालघन
(C) श्यामघन
(D) प्रेमघन
उत्तर: (D) प्रेमघन

6. बदरीनारायण चौधरी प्रेमघन द्वारा रचित कविता कौन-सी है?
(A) भारतमाता
(B) स्वदेशी
(C) जनतंत्र का जन्म
(D) हमारी नींद
उत्तर: (B) स्वदेशी

7. ‘स्वदेशी’ कविता किससे संकलित है?
(A) प्रेमघन सर्वस्व से
(B) जीर्ण जनपद से
(C) भारत प्रयाग से
(D) प्रयाग रामागमन
उत्तर: (B) जीर्ण जनपद से

8. बदरीनारायण चौधरी प्रेमघन का जन्म कब हुआ था?
(A) 1855 ई०
(B) 1875 ई०
(C) 1860 ई०
(D) 1845 ई०
उत्तर: (A) 1855 ई०

9. परदेश की विद्या पढ़ने का क्या परिणाम हुआ?
(A) सबकी बुद्धि भारतीय हो गई
(B) सबकी बुद्धि विदेशी हो गई
(C) सबकी बुद्धि आध्यात्मिक हो गई
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर: (B) सबकी बुद्धि विदेशी हो गई

10. ‘प्रेमघन’ अपना आदर्श किसे मानते थे?
(A) महात्मा गाँधी
(B) विवेकानंद
(C) रवीन्द्रनाथ टैगोर
(D) भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
उत्तर: (D) भारतेन्दु हरिश्चन्द्र

11. कवि प्रेमघन के अनुसार भारत के लोग क्या बनकर खुशामद और झूठी प्रशंसा में लगे हैं?
(A) ढोलक
(B) मृदंग
(C) डफाली
(D) बाँसुरी
उत्तर: (C) डफाली

12. “बोली सकत ________ नहीं, अब मिलि हिन्दू लोग। अंग्रेजी भाखन करत, अंग्रेजी उपभोग।” इन पंक्तियों में कवि ने किस भाषा के बढ़ते प्रभाव की ओर संकेत किया है?
(A) अंग्रेजी
(B) संस्कृत
(C) हिन्दी
(D) अवधी
उत्तर: (A) अंग्रेजी

13. स्वदेशी कविता में कवि को भारत में अब क्या दिखाई नहीं पड़ता है?
(A) भारतीयता
(B) सदाचारिता
(C) मानवता
(D) स्वतंत्रता
उत्तर: (A) भारतीयता

14. _________ भारती देखि कोउ, सकत नहीं पहिचान, मुसल्मान, हिन्दू किधौं कै हैं ये क्रिस्तान।” पंक्तियों में ‘भारती देखि कोउ’ से कौन अभिप्रेत है?
(A) मनुज
(B) मनुष्य
(C) मानुष
(D) तनुज
उत्तर: (A) मनुज

15. प्रेमघन का जन्म कहाँ हुआ था?
(A) वनारस
(B) डुमराँव
(C) लखनऊ
(D) मिर्जापुर
उत्तर: (B) डुमराँव

16. प्रेमघन के किस काव्य में ग्रामीण जीवन का यथार्थवादी चित्रण है?
(A) भारत सौभाग्य
(B) जीर्ण जनपद
(C) प्रयाग रामागमन
(D) प्रेमघन सर्वस्व
उत्तर: (B) जीर्ण जनपद

17. भारतेन्दु युग के महत्त्वपूर्ण कवि थे।
(A) प्रेमघन
(B) घनानंद
(C) रसखान
(D) पंत
उत्तर: (A) प्रेमघन

18. प्रेमघन काव्य और जीवन दोनों क्षेत्रों में किसे अपना आदर्श मानते हैं?
(A) द्विवेदी को
(B) निराला को
(C) भारतेन्दु को
(D) प्रसाद को
उत्तर: (C) भारतेन्दु को

19. पढ़ि विद्या परदेश की, बुद्धि विदेसी पाय। चाल-चलन परदेश की, गई इन्हें अति भाय।। प्रस्तुत पंक्ति किस कविता की है?
(A) भारतमाता
(B) स्वदेशी
(C) जनतंत्र का जन्म
(D) हिरोशिमा
उत्तर: (B) स्वदेशी

20. कवि प्रेमघन द्वारा अधिकांश काव्य रचना किस भाषा में की गयी है?
(A) संस्कृत
(B) ब्रजभाषा और अवधी
(C) हिन्दी
(D) उड़िया
उत्तर: (C) हिन्दी

21. ‘हिन्दुस्तानी नाम सुनि, अब ये सकुचि लजात’ प्रस्तुत पंक्ति किस कविता से उद्धृत है?
(A) भारतमाता
(B) जनतंत्र का जन्म
(C) अक्षर ज्ञान
(D) स्वदेशी
उत्तर: (D) स्वदेशी

22. ‘आनंद कादंबिनी’ मासिक पत्रिका का संपादन किया है-
(A) भारतेन्दु ने
(B) प्रेमघन ने
(C) द्विवेदी ने
(D) आचार्य शुक्ल ने
उत्तर: (B) प्रेमघन ने

23. कवि प्रेमघन के अनुसार अब लोग किस भाषा का प्रयोग अधिक कर रहे हैं?
(A) हिन्दी
(B) मगही
(C) अंग्रेजी
(D) तमिल
उत्तर: (C) अंग्रेजी

24. प्रेमघन साहित्य सम्मेलन के किस अधिवेशन के सभापति रहे थे?
(A) बम्बई अधिवेशन
(B) कलकत्ता अधिवेशन
(C) लखनऊ अधिवेशन
(D) सूरत अधिवेशन
उत्तर: (B) कलकत्ता अधिवेशन

25. प्रेमघन जी कवि के साथ-साथ थे-
(A) निबंधकार
(B) नाटककार
(C) समीक्षक
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर: (D) उपर्युक्त सभी

26. कवि प्रेमघन के अनुसार भारतीय हाट-बाजार किस सामान से भरा पड़ा है?
(A) स्वदेशी
(B) देशी
(C) अंग्रेजी
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर: (C) अंग्रेजी

27. ‘रसिक समाज’ की स्थापना किस कवि ने की थी?
(A) भारतेन्दु
(B) घनानंद
(C) प्रेमघन
(D) रसखान
उत्तर: (C) प्रेमघन

28. कवि के अनुसार क्या देखकर भारत में भारतीयता कुछ नहीं दिखती है?
(A) गति
(B) रति
(C) रीत
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर: (D) उपर्युक्त सभी

29. “सबै विदेसी वस्तु नर, गति रति रीत लखात। __________ कुछ न अब, भारत म दरसात।”
(A) राष्ट्रीयता
(B) भारतीयता
(C) मनुजता
(D) आत्मीयता
उत्तर: (B) भारतीयता

30. 1874 में ‘प्रेमघन’ ने किस समाज की स्थापना की?
(A) आदर्श समाज
(B) बुद्धिजीवी समाज
(C) रसिक समाज
(D) कोई नहीं
उत्तर: (C) रसिक समाज

निष्कर्ष :

ऊपर आपने बिहार बोर्ड कक्षा 10 की हिन्दी पुस्तक “गोधूली भाग 2” के काव्यखंड के चौथे अध्याय “स्वदेशी” की व्याख्या, बोध-अभ्यास, महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर और वस्तुनिष्ठ प्रश्नों को पढ़ा। यह अध्याय न केवल आपकी परीक्षा की दृष्टि से सहायक है बल्कि जीवन के लिए भी प्रेरणादायी सीख देता है। हमें उम्मीद है कि यह सामग्री आपके अध्ययन को और सरल व प्रभावी बनाएगी। यदि किसी प्रश्न या समाधान को लेकर आपके मन में कोई शंका हो, तो आप नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स में लिख सकते हैं या सीधे हमसे संपर्क करें। हम आपकी मदद करने की पूरी कोशिश करेंगे। संपर्क करें
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