BSEB 10th Hindi Godhuli Kavy Ex-11 Solution व्याख्या और important Objectives : लौटकर आऊँगा फिर
बिहार बोर्ड के छात्र/छात्राएँ इस पोस्ट को पूरा अंत तक पढ़े। इसके पढ़ने से इस अध्याय के सभी डाउट खत्म हो जाएँगे और आप बिहार बोर्ड मैट्रिक परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करने में बहुत मददगार होगा। साथ ही आप सभी इस अध्याय के सभी प्रश्नोत्तरों एवं व्याख्याओं का PDF भी आप निशुल्क डाउनलोड (Download) कर सकते हैं। PDF लिंक नीचे उपलब्ध है, जिससे आप इसे ऑफलाइन भी पढ़ सकते हैं।
जीवनानंद दास जी का संक्षिप्त परिचय
अध्याय 11 | लौटकर आऊँगा फिर |
---|---|
पूरा नाम | जीवनानंद दास |
जन्म | 1899 ई. |
जन्म स्थान | बंगाल |
काल/युग | रवींद्रोत्तर युग (आधुनिक बंगला काव्य आंदोलन) |
मृत्यु | 1954 ई. (एक दुर्घटना में) |
प्रमुख काव्य संकलन (जीवितावस्था में प्रकाशित) | झरा पालक, धूसर पांडुलिपि, वनलता सेन, महापृथिवी, सातटि तारार तिमिर, जीवनानंद दासेर श्रेष्ठ कविता |
मृत्यु के बाद प्रकाशित कृतियाँ | रूपसी बाँग्ला, बेला अबेला कालबेला, मनविहंगम, आलोक पृथिवी (काव्य संकलन), लगभग 100 कहानियाँ और 13 उपन्यास |
प्रमुख कृति | वनलता सेन |
सम्मान | निखिल बंग रवींद्र साहित्य सम्मेलन द्वारा “वनलता सेन” को 1952 ई. में श्रेष्ठ काव्यग्रंथ का पुरस्कार |
विशेषता | रवींद्रनाथ के बाद आधुनिक बंगला काव्य को नई दिशा देने वाले सर्वाधिक प्रभावशाली एवं मौलिक कवि, यथार्थवादी दृष्टिकोण के प्रवर्तक, मातृभूमि और परिवेश से गहरा लगाव |
हिन्दी अनुवादक | प्रयाग शुक्ल (लौटकर आऊँगा फिर) |
व्याख्या
लौटकर आऊँगा फिर
“खेत हैं जहाँ धान के, बहती नदी के किनारे फिर आऊँगा लौट कर एक दिन-बंगाल में;
नहीं शायद होऊँगा मनुष्य तब, होऊँगा अबाबील या फिर कौवा उस भोर का फूटेगा नयी धान की फसल पर…”
व्याख्या – कवि जीवनानंद दास यहाँ अपने गहरे मातृभूमि-प्रेम को व्यक्त करते हैं। वे कहते हैं कि जिस बंगाल की धरती धान के खेतों और बहती नदियों से सुशोभित है, वहाँ वे मृत्यु के बाद भी लौटकर आएँगे। कवि को अपनी जन्मभूमि से इतना प्रेम है कि यदि उन्हें मनुष्य का जन्म न भी मिले तो भी वे पक्षी बनकर – अबाबील या कौआ बनकर – उसी भूमि में रहना चाहेंगे। यह कवि की सरलता और अपनी मिट्टी के प्रति अटूट लगाव का सुंदर प्रमाण है।
“जो कुहरे के पालने से कटहल की छाया तक भरता पेंग, आऊँगा एक दिन !
बन कर शायद हंस मैं किसी किशोरी का; घुँघरू लाल पैरों में; तैरता रहूँगा बस दिन-दिन भर पानी में –
गंध जहाँ होगी ही भरी, घास की । आऊँगा मैं। नदियाँ, मैदान बंगाल के बुलायेंगे- मैं आऊँगा।”
व्याख्या – कवि इस अंश में बंगाल की प्राकृतिक सुंदरता का अद्भुत चित्र खींचते हैं। सुबह का कुहासा, कटहल के पेड़ की छाया, और तालाब में लाल पाँवों वाली किशोरी के संग तैरता हंस – यह सब ग्रामीण सौंदर्य का जीवंत चित्र है। कवि कहते हैं कि चाहे जिस रूप में हों, वे अपनी भूमि पर लौटेंगे। हरी-भरी घास की गंध, नदियाँ और मैदान जैसे उन्हें पुकारते हैं। कवि की आत्मा अपने देश की प्रकृति से इस प्रकार जुड़ी है कि मृत्यु के पार भी वहाँ लौटने की लालसा प्रकट होती है।
“जिसे नदी धोती ही रहती है पानी से-इसी हरे सजल किनारे पर ।
शायद तुम देखोगे शाम की हवा के साथ उड़ते एक उल्लू को शायद तुम सुनोगे कपास के पेड़ पर उसकी बोली”
व्याख्या – यहाँ कवि नदी के हरे-भरे किनारों की सुंदरता का चित्रण करते हैं। वह भूमि निरंतर नदी के जल से धुलकर और अधिक पवित्र हो जाती है। कवि कल्पना करते हैं कि वे शायद उल्लू बनकर लौटेंगे और उनकी ध्वनि कपास के पेड़ पर सुनाई देगी। कवि का यह रूपक बताता है कि वे चाहे कितने भी सामान्य या महत्वहीन रूप में जन्म लें, उनकी आत्मा अपनी मातृभूमि को नहीं छोड़ेगी।
“घासीली जमीन पर फेंकेगा मुट्ठी भर-भर चावल शायद कोई बच्चा – उबले हुए !
देखोगे, रूपसा के गंदले-से पानी में नाव लिए जाते एक लड़के को उड़ते फटे पाल की नाव !”
व्याख्या – कवि यहाँ बंगाल के सामान्य जीवन और संघर्षशील समाज का मार्मिक चित्रण करते हैं। कोई बच्चा घास पर उबले हुए चावल फेंक रहा है, और रूपसा नदी में फटे पाल की नाव से लड़का कठिनाइयों से जूझता हुआ आगे बढ़ रहा है। यह दृश्य कवि की दृष्टि में बंगाल की वास्तविकता और जीवटता का प्रतीक है। कवि ऐसे ही जीवन से जुड़ना चाहते हैं और उसी संघर्षमय मातृभूमि में पुनः लौटना चाहते हैं।
“लौटते होंगे रंगीन बादलों के बीच, सारस अँधेरे में होऊँगा मैं उन्हीं के बीच में देखना !”
व्याख्या – कवि अंत में सारस पक्षियों का उदाहरण देते हुए अपनी बात को पूर्ण करते हैं। जैसे सारस अँधेरे बादलों के बीच भी लौटते हैं, वैसे ही वे भी लौटेंगे। चाहे परिस्थितियाँ कितनी ही कठिन क्यों न हों, उनका मातृभूमि-प्रेम उन्हें वापस खींच लाएगा। यहाँ कवि ने अपनी अटूट आस्था और जन्मभूमि से गहरे संबंध को सम्मानपूर्वक अभिव्यक्त किया है।
[Note] : जीवनानंद दास की कविता “लौटकर आऊँगा फिर” मातृभूमि-प्रेम और प्रकृति-सौंदर्य का अत्यंत हृदयस्पर्शी उदाहरण है। कवि ने अपनी जन्मभूमि बंगाल के प्रति गहरे लगाव को इस कविता में व्यक्त किया है। वे कहते हैं कि मृत्यु के बाद भी उनकी आत्मा इस भूमि से बिछुड़ नहीं पाएगी और वे किसी न किसी रूप में लौटकर अवश्य आएँगे। चाहे पक्षी बनकर, चाहे हंस बनकर या सामान्य जीव-जंतु के रूप में, लेकिन अपनी मातृभूमि की गोद को वे कभी नहीं छोड़ेंगे।कविता का प्रत्येक बिंब बंगाल की प्राकृतिक छटा और ग्रामीण जीवन को जीवंत कर देता है—धान के खेत, बहती नदियाँ, कुहासा, कटहल की छाया, नदी का किनारा, कपास का पेड़, सारस और नाव—ये सब मिलकर कवि के गहरे भावों को साकार करते हैं। कवि का कहना है कि उनका संबंध केवल मनुष्य के रूप तक सीमित नहीं है, बल्कि इस धरती, इसकी नदियों, खेतों और यहाँ के जीव-जंतुओं तक फैला हुआ है। यही कारण है कि वे मृत्यु के बाद भी किसी न किसी रूप में लौटने की तीव्र लालसा प्रकट करते हैं।
इस कविता से हमें यह शिक्षा मिलती है कि अपनी मातृभूमि, अपनी जड़ों और अपनी संस्कृति के प्रति सच्चा प्रेम अमर होता है। मनुष्य चाहे किसी भी परिस्थिति में क्यों न हो, उसका असली जुड़ाव अपनी जन्मभूमि से ही रहता है। कविता यह संदेश देती है कि हमें अपनी भूमि, उसके प्राकृतिक सौंदर्य और संस्कृति की रक्षा करनी चाहिए और उससे गहरा लगाव बनाए रखना चाहिए। यह मातृभूमि-प्रेम ही मनुष्य को जीवन में दृढ़ता और आत्मिक संतोष प्रदान करता है।
बोध और अभ्यास
कविता के साथ
(क) “बनकर शायद हंस मैं किसी किशोरी का; घुँघरू लाल पैरों में; तैरता रहूँगा बस दिन-दिन भर पानी में गंध जहाँ होगी ही भरी, घास की।”
(ख) “खेत हैं जहाँ धान के, बहती नदी के किनारे फिर आऊँगा लौट कर एक दिन बंगाल में;”
(ख) इस अंश में कवि स्पष्ट रूप से कहते हैं कि अगले जन्म में भी वह केवल अपनी मातृभूमि बंगाल में ही जन्म लेना चाहते हैं। यहाँ बंगाल के खेतों में उगती लहलहाती धान की फसलें और कल-कल करती नदी का मनोहर चित्रण किया गया है। कवि इन प्राकृतिक सौंदर्यों के बीच अपने आने की इच्छा प्रकट करते हैं। यह अंश बंगाल के प्रति उनकी गहरी स्नेहपूर्ण भावनाओं और मातृभूमि से जुड़ी स्वच्छंद अभिव्यक्ति को दर्शाता है।
भाषा की बात
1. निम्नांकित शब्दों के लिंग परिवर्तन करें। लिंग परिवर्तन में आवश्यकता पड़ने पर समानार्थी शब्दों के भी प्रयोग करें –
नदी, कौआ, भोर, नयी, हंस, किशोरी, हवा, बच्चा, बादल सारस
उत्तर :
नदी – नद
कौआ – कौवी / काकी
भोर – संध्या
नयी – नया
हंस – हंसिनी
किशोरी – किशोर
हवा – पवन
बच्चा – बच्ची
बादल – बादलिन / मेघिनी
सारस – सारसी
2. कविता से विशेषण चुनें और उनके लिए स्वतंत्र विशेष्य पद दें।
उत्तर :
धान की नयी फसल – नयी → फसल
घुँघरू लाल पैर – लाल → पैर
हरी-भरी घास – हरी-भरी → घास
हरे सजल किनारे – हरे, सजल → किनारे
गंदले-से पानी – गंदले-से → पानी
फटे पाल – फटे → पाल
रंगीन बादल – रंगीन → बादल
अँधेरे में – अँधेरे → वातावरण / दृश्य
3.
कविता में प्रयुक्त सर्वनाम चुनें और उनका प्रकार भी बताएँ ।
उत्तर:
मैं → पुरुषवाचक सर्वनाम
तुम → पुरुषवाचक सर्वनाम
कोई → अनिश्चय वाचक सर्वनाम
उसकी → संबंधवाचक सर्वनाम
वह → पुरुषवाचक सर्वनाम
जिसे → संबंधवाचक सर्वनाम
शब्द निधि
पेंग : झूले का दोलन
रूपसा : बंगाल की नदी विशेष
सारस पक्षी विशेष, क्रौंच
Class10 हिंदी के अन्य अध्यायों के समाधान
क्रमांक | अध्याय |
---|---|
1 | राम बिनु बिरथे जगि जनमा |
2 | प्रेम-अयनि श्री राधिका |
3 | अति सुधो सनेह को मारग है |
4 | स्वदेशी |
5 | भारतमाता |
6 | जनतंत्र का जन्म |
7 | हिरोशिमा |
8 | एक वृक्ष की हत्या |
9 | हमारी नींद |
10 | अक्षर – ज्ञान |
12 | मेरे बिना तुम प्रभु |
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
(A) भारतेन्दु युग
(B) द्विवेदी युग
(C) रवींद्रोत्तर युग
(D) छायावादी युग
उत्तर: (C) रवींद्रोत्तर युग
2. ‘लौटकर आऊँगा फिर’ कविता किस कवि द्वारा भाषांतरित की गई है?
(A) जीवनानंद दास
(B) विनोद कुमार शुक्ल
(C) प्रयाग शुक्ल
(D) कुँवर नारायण
उत्तर: (C) प्रयाग शुक्ल
3. बंगला भाषा के सर्वाधिक सम्मानित एवं चर्चित कवियों में से एक है—
(A) वीरेन डंगवाल
(B) कुँवर नारायण
(C) जीवनानंद दास
(D) रेनर मारिया रिल्के
उत्तर: (C) जीवनानंद दास
4. किस कविता में कवि जीवनानंद दास का अपनी मातृभूमि तथा परिवेश से उत्कट प्रेम अभिव्यक्त होता है।
(A) मेरे बिना तुम प्रभु
(B) लौटकर आऊँगा फिर
(C) हिरोशिमा
(D) अक्षर-ज्ञान
उत्तर: (B) लौटकर आऊँगा फिर
5. ‘कविता लौटकर आऊँगा फिर’ में कवि कहाँ लौटकर आने की लालसा व्यक्त करते हैं?
(A) बिहार
(B) बंगाल
(C) झारखंड
(D) उड़ीसा
उत्तर: (B) बंगाल
6. “खेत है जहाँ धान के, बहती नदी के किनारे फिर आऊँगा लौट कर एक दिन बंगाल में।” उपर्युक्त पद्यांश के कवि कौन हैं?
(A) जीवनानंद दास
(B) प्रेमघन
(C) पंत
(D) दिनकर
उत्तर: (A) जीवनानंद दास
7. जीवनानंद दास किस भाषा के सर्वाधिक सम्मानित एवं चर्चित कवियों में से एक है?
(A) हिन्दी
(B) संस्कृत
(C) मैथिली
(D) बंगला
उत्तर: (D) बंगला
8. जीवनानंद दास के जीवन काल में कितने काव्य संकलन प्रकाशित हुए थे?
(A) पाँच
(B) आठ
(C) छ:
(D) दस
उत्तर: (C) छ:
9. कवि कपास के पेड़ पर किसकी बोली सुनने की बात करता है?
(A) तोते की
(B) कबूतर की
(C) कौवा की
(D) उल्लू की
उत्तर: (A) तोते की
10. ‘झरा पालक’ किसकी रचना है-
(A) जीवनानंद दास
(B) रेनर मारिया रिल्के
(C) अनामिका
(D) कुँवर नारायण
उत्तर: (A) जीवनानंद दास
11. ‘रूपसी बाँग्ला’ किसकी रचना है?
(A) अज्ञेय
(B) अनामिका
(C) जीवनानंद दास
(D) दिनकर
उत्तर: (C) जीवनानंद दास
12. ‘वनलता सेन’ के कवि हैं-
(A) प्रेमघन
(B) वीरेन डंगवाल
(C) जीवनानंद दास
(D) रेनर मारिया रिल्के
उत्तर: (C) जीवनानंद दास
13. कवि अगले जीवन में क्या बनने की अभिलाषा व्यक्त करते हैं?
(A) आबावील
(B) कौआ
(C) हंस
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर: (D) उपर्युक्त सभी
14. बन कर शायद हंस मैं किसी किशोरी का, घुंघरू लाल पैरों में तैरता रहूँगा बस दिन-दिन भर पानी में गंध जहाँ होगी हरी-भरी घास की प्रस्तुत पंक्ति किस कविता की है?
(A) भारतमाता
(B) स्वदेशी
(C) लौटकर आऊँगा फिर
(D) मेर बिना तुम प्रभु
उत्तर: (C) लौटकर आऊँगा फिर
15. ‘लौटकर आऊँगा फिर’ पाठ से कवि कहाँ लौटने की बात कहते हैं?
(A) बिहार में
(B) असम में
(C) उड़ीसा में
(D) बंगाल में
उत्तर: (D) बंगाल में
16. “गंध जहाँ होगी हरी-भरी घास की” किस कवि की पंक्ति है?
(A) वीरेन डंगवाल
(B) जीवनानंद दास
(C) अनामिका
(D) कुंवर नारायण
उत्तर: (B) जीवनानंद दास
17. निखिल बंग रवींद्र साहित्य सम्मेलन द्वारा ‘वनलता सेन’ को कब श्रेष्ठ काव्यग्रंथ का पुरस्कार दिया गया था?
(A) 1950 ई० में
(B) 1952 ई० में
(C) 1953 ई० में
(D) 1955 ई० में
उत्तर: (B) 1952 ई० में
18. ‘लौटकर आऊँगा फिर’ कविता का मूल भाषा कौन-सी है?
(A) हिन्दी
(B) संस्कृत
(C) बंगला
(D) अंग्रेज़ी
उत्तर: (C) बंगला
19. ‘लौटकर आऊँगा फिर’ कविता का मुख्य भाव है—
(A) संघर्ष
(B) स्वदेश-प्रेम
(C) प्रकृति-चित्रण
(D) विरह
उत्तर: (B) स्वदेश-प्रेम
20. ‘लौटकर आऊँगा फिर’ कविता का हिन्दी अनुवाद किस कवि ने किया?
(A) प्रयाग शुक्ल
(B) विनोद कुमार शुक्ल
(C) दिनकर
(D) कुंवर नारायण
उत्तर: (A) प्रयाग शुक्ल